गजल- अजय ठाकुर (मोहन जी)

हम त बैन बैशलो शराबी की करू /
और कनियाँ स जुदा हम कि रहु //

जिन्दगी बाकी या आब त थोरे दिन /
दुनू तरप जरैत देह अछी की करू //

कनियाँ ल क आबी गेलैथ हन शीशा /
लेकिन हम खुदस हारल छी की करू //

छल कहाँ नाव दुबाबे के गप्प /
हम त अंधी के हवा छी की करू //

टुकरा में बैट गेल हमर के पहचान /
हम त टुटल शीशा छी की करू //

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