गजल- भास्करानद झा भास्कर


जीनगीक कष्ट सब अबिते रहत  
आंखिक नोर सदिखन झरितॆ रहत ।

हृदयक भाव त पवित्र रखिने रहू 
प्रेमक दीप सदिखन जरिते रहत ।

भावक सुख में त परम सुख भेटत
जीनगीक गाड़ी अहिना चलिते रहत

दिनक इजोरिया में खुब खुश रहू
रातुक अन्हरिया त अबिते रहत !

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