मीत भाइ शृंखलाक मैथिली भाषा कथा-व्यंग्य:२/१ (गजेन्द्र ठाकुर)


पसीझक काँट भाग - १

ई विशुद्ध व्यंग्य-रचना थिक। एहिमे वर्णित कोनो घटना-दुर्घटनाक वर्णन ककरो आहत करबाक लेल नहि वरन् विशुद्ध मनोरंजनक लेल कएल गेल अछि।














मीत भाइककेँ पसीधक काँट नहि गड़लन्हि, ई काँट ककरो गड़ि गेल होए, ई सुनबामे नञि अबैत अछि। ई काँट किछु आन कारणसँ प्रसिद्ध अछि। पसीधक काँट मिथिलाक बोनमे आब साइते उपलब्ध छैक। हम जखन बच्चा रही तँ ई काँट देखने रही मुदा एहि बेर जे गेलहुँ तँ क्यो कहय जे आब ई काँट नहि भेटैत छैक। मुदा जयराम कहलन्हि जे बड़ मेहनतिसँ तकला पर भेटि जाइत छैक। जेना आगाँ कथा-व्यंग्यमे सेहो चर्च अछि, पसीधक काँट उज्जर बिखाह रसक लेल प्रसिद्ध अछि, जे पीलासँ मृत्यु धरि भए जाइत अछि, आऽ बेशी दिन नहि २५-३० साल पहिने धरि गाममे बेटा मायकेँ झगड़ाक बाद ई कहैत सुनल जाइत छलाह जे देखिहँ एक दिन पसीधक रस पीबि मरि जएबौक गञि बुढ़िया। आब सुनू मीत भाइक खोरष।

मीत भाइक खिस्सा की कहब। गामसँ निकललथि आऽ लाल काका लग दिल्ली पहुँचलाह नोकरी करबाक हेतु, मुदा यावत लाल काका-काकी लग रहलाह, तावत कनैत-कनैत हुनका लोकनिकेँ अकच्छ कऽ देलखिन्ह।

मीत भाइ यावत गाममे रहथि, तँ भरि दिन उकठपन करैत रहथि। से कथाक बीचमे हमरा जेना-जेना मोन पड़ैत जायत, तेना-तेना हम हुनकर उकठपनक खोरिष कहैत रहब। जौँ मीत भाइक खिस्सा सुनबाक होए तँ यावत ई-सभ अहाँकेँ बुझल नहि रहत तावत धरि नहिये खिस्सा नीक लागत आऽ नहिये बुझबामे आएत।तँ मीत भाइ उकट्ठी छलाह से सिद्ध भेल।

आहि रे बा। उकठपनक एकोटा खिस्सा सुनबे नहि कएलहुँ आऽ मानि लेलहुँ जे सिद्ध भए गेल तँ सुनू।

मीत भाइ यावत गाममे रहथि उकठपनी करैत रहैत छलाह। एक बेर पसीधक काँटक रस पोखड़िमे दऽ कए पोखरिक सभटा माँछ मारि देने रहथि। मुदा ई तँ पसीधक रससँ जुड़ल हुनकर एकटा छोट अपराध छल। पसीधक काँटसँ जुड़ल हुनकर एकटा पैघ अपराधक चर्च आगाँ आब होएत जाहिसँ सौँसे गाम दहसि गेल छल। एक बेर पुबाड़ि टोलक कोनो बच्चाक मोन खराप भेलैक, तँ हिनका सँ अएलन्हि पुछबाक हेतु जे कोन दबाइ दियैक। मीत भाइ पसीधक काँटक रस पियाबय कहलखिन्ह। आऽ ई दबाइ कहि मीत भाइ महीँस चरेबाक हेतु डीह दिशि चलि गेलाह।एक गोट दोसर मँहीसबार गाम परसँ अबैत देखाऽ पड़लन्हि मीत भाइकेँ, तँ पुछलखिन्ह-जे

"हौ बाउ, पुबाड़ि टोल दिशि सँ कोनो कन्नारोहटो सुनि पड़ल छल अबैत काल"?

बुझू। मीत भाइ एक तँ गलत कारण बतओने छलाह आऽ फेर ओकर दुष्परिणामक सेहो अहलदिलीसँ बाट जोहि रहल छलाह। एहि घटनासँ बड़ थू-थू भेलन्हि गाममे मीत भाइक। ओऽ तँ धन रहल जे मरीजक बाप जखन कलमसँ पसीधक काँट नेने घुरि रहल छलाह तँ रस्तामे क्यो भेँटि गेलन्हि आऽ पूछि देलकन्हि। नहि तँ ओऽ अपन बच्चासँ हाथ धोबय जाऽ रहल छलाह।मीत भाइ एहि घटनाक बाद कंठी लऽ लेलन्हि।

माने आब माँछ-मौस नहि खायब, ई प्रण कएलन्हि। मुदा घरमे सभ क्यो माँछ खूब खाइत छलन्हि। एक बेर भोरे- भोर खेत दिशि कोदारि आऽ छिट्टा लए बिदा भेलाह मीत भाइ। बुन्ना-बान्नी होइत छल, मुदा आड़िकेँ तड़पैत एकटा पैघ रोहुकेँ देखि कए कोदारि चला देलन्हि। आऽ रोहु दू कुट्टी भऽ गेल। दुनू ट्कड़ीकेँ माथ पर उठा कए विदा भेलाह मीत भाइ गाम दिशि। तकरा देखि गोनर भाय गाम पर जाइत काल बाबा दोगही लग ठमकि कए ठाढ़ भए गेलाह।

आब फेर मोसकिल। पहिने बाबा दोगहीक अर्थ बुझि लिअ। नहि तँ कथा फेर बुझबामे नहि आएत।

‘बाबा दोगही’ मीत भाइक टोलकेँ गौँआ सभ ताहि हेतु कहैत छल,कारण जे क्यो बच्चो ओहि टोलमे जनमैत छ्ल से संबंधमे गौँआ सभक बाबा होइत छल।

आब कथा आगाँ बढ़ाबी। गोनर भाइ मोनमे ई सोचैत रहथि, जे वैष्णव जीसँ रोहु कोना कए लए ली। आऽ ओऽ ई सोचि बजलाह।

“यौ मीत भाइ। ई की कएलहुँ। वैष्णव भऽ कए माछ उघैत छी”।

“यौ माछ खायब ने छोड़ने छियैक। मारनाइ तँ नञि ने”। मीत भाइ बजलाह।

अपन सनक मुँह लए गोनर भाइ विदा भए गेलाह।

एहिना एक दिन गोनर झा टेलीफोन डायरी देखि रहल छलाह, तँ हुनका देखि मीत भाइ पुछलखिन्ह-

“की देखि रहल छी”।

गोनर झा कहलखिन्ह- जे

“टेलीफोन नंबर सभ लिखि कए रखने छी, ताहिमे सँ एकटा नंबर ताकि रहल छी”।

“ आ’ जौँ बाहरमे रस्तामे कतहु पुलिस पूछि देत जे ई की रखने छी तखन”।

“ ऐँ यौ से की कहैत छी। टेलीफोन नंबर सभ सेहो लोक नहि राखय”।”से तँ ठीक मुदा एतेक नंबर किएक रखने छी, पुछला पर जौँ जबाब नहि देब तँ आतंकी बुझि जेलमे नहि धए देत”।

”से कोना धए देत। एखने हम एहि डायरीकेँ टुकड़ी-टुकड़ी क’ कए फेंकि दैत छियैक”।आ’ से कहि गोनर भाइ ओहि डायरीकेँ पाड़-फूड़ि कए फेंकि देलखिन्ह। (शेष अगिला भागमे)

8 टिप्पणियाँ

मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

  1. रानूजी आऽ ममताजीसँ कहने रहियन्हि अपन-अपन रचना पोस्ट करबाक लेल मुदा किएक तँ ताहिमे विलम्ब भए रहल अछि, ताहि द्वारे हमही फेरसँ आबि गेल छी मीत भाइक श्रृंखला लए। एकर पुरातन रूप ’विदेह’ ई-पत्रिकामे छपल छल, मुदा एतए ताहिमे ढ़ेर रास परिवर्तन कएल गेल अछि। पहिल तँ ई "विदेह"मे मीत भाइक श्रृंखलाक रूपमे सन्कल्पित नञि छल से ताहि द्वारे एहिमे छह घंटा लगाकए एकरा श्रृंखलाबद्ध कएल गेल अछि। दोसर कारण अछि जे हम आब जीतूजीक मैथिल-मिथिलाक लेल मीत भाइ श्रृंखला शुरू करबाक निर्णय कएने छी। से पुरनका खिस्सा नञि बुझने श्रृंखलाक तारतम्य गड़बड़ा जाइत, ताहि लेल "विदेह"क परिवर्त्तित कथा-व्यंग्य एतय नव रूपमे देल जाऽ रहल अछि। भगवतीक इच्छा रहतन्हि तँ ई शृंखला चन्द्रमाक कला जेकाँ बढ़ैत रहत।

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  2. baabaa dogaheeka meeta bhai paseejhaka jhaaDi para chaDhaa delanhi , paseedhaka kaant ker prayog kanek galat kaylanhi, khattar kaka chatur chhalah muda meet bhai boori chhathi,
    sajeeva varnana, gaamk boori lokak

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  3. telephone diary tukaree kaya pheki delanhi meet bhai ka sangi, meet bhai ta ata tah kay rahal chhathi.

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  4. भिन्न मानसिकताक सम्पादक लोकनि द्वारा आहत भए विलुप्त कए देल गेल छल, o sabh apna me meet bhaik durgun dekhne hoytah jenaएक बेर पुबाड़ि टोलक कोनो बच्चाक मोन खराप भेलैक, तँ हिनका सँ अएलन्हि पुछबाक हेतु जे कोन दबाइ दियैक। मीत भाइ पसीधक काँटक रस पियाबय कहलखिन्ह। आऽ ई दबाइ कहि मीत भाइ महीँस चरेबाक हेतु डीह दिशि चलि गेलाह।एक गोट दोसर मँहीसबार गाम परसँ अबैत देखाऽ पड़लन्हि मीत भाइकेँ, तँ पुछलखिन्ह-जे

    "हौ बाउ, पुबाड़ि टोल दिशि सँ कोनो कन्नारोहटो सुनि पड़ल छल अबैत काल"?
    ekar atirikt te aar sabh gap me meeta bhai thike chhathi, apan-apan soch

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  5. आब फेर मोसकिल। पहिने बाबा दोगहीक अर्थ बुझि लिअ। नहि तँ कथा फेर बुझबामे नहि आएत।

    ‘बाबा दोगही’ मीत भाइक टोलकेँ गौँआ सभ ताहि हेतु कहैत छल,कारण जे क्यो बच्चो ओहि टोलमे जनमैत छ्ल से संबंधमे गौँआ सभक बाबा होइत छल।

    आब कथा आगाँ बढ़ाबी। गोनर भाइ मोनमे ई सोचैत रहथि, जे वैष्णव जीसँ रोहु कोना कए लए ली। आऽ ओऽ ई सोचि बजलाह।

    “यौ मीत भाइ। ई की कएलहुँ। वैष्णव भऽ कए माछ उघैत छी”।

    “यौ माछ खायब ने छोड़ने छियैक। मारनाइ तँ नञि ने”। मीत भाइ बजलाह।

    अपन सनक मुँह लए गोनर भाइ विदा भए गेलाह।

    एहिना एक दिन गोनर झा टेलीफोन डायरी देखि रहल छलाह, तँ हुनका देखि मीत भाइ पुछलखिन्ह-

    “की देखि रहल छी”।

    गोनर झा कहलखिन्ह- जे

    “टेलीफोन नंबर सभ लिखि कए रखने छी, ताहिमे सँ एकटा नंबर ताकि रहल छी”।

    “ आ’ जौँ बाहरमे रस्तामे कतहु पुलिस पूछि देत जे ई की रखने छी तखन”।

    “ ऐँ यौ से की कहैत छी। टेलीफोन नंबर सभ सेहो लोक नहि राखय”।”से तँ ठीक मुदा एतेक नंबर किएक रखने छी, पुछला पर जौँ जबाब नहि देब तँ आतंकी बुझि जेलमे नहि धए देत”।

    ”से कोना धए देत। एखने हम एहि डायरीकेँ टुकड़ी-टुकड़ी क’ कए फेंकि दैत छियैक”।आ’ से कहि गोनर भाइ ओहि डायरीकेँ पाड़-फूड़ि कए फेंकि देलखिन्ह। (शेष अगिला भागमे)
    aab agila ank seho parhay parat.

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  6. उत्कृष्ट रचना। गामक आ गामक लोकक मोन पड़ि गेल।

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  7. vastava me bad nik katha, ehina kutsit mansikta bala lok ke miit bhai ahat karait rahathi se aagrah.

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मिथिला दैनिक (पहिने मैथिल आर मिथिला) टीमकेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, पाठक लोकनि एहि जालवृत्तकेँ मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आ सर्वग्राह्य जालवृत्तक स्थान पर बैसेने अछि। अहाँ अपन सुझाव संगहि एहि जालवृत्त पर प्रकाशित करबाक लेल अपन रचना ई-पत्र द्वारा mithiladainik@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

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